नवरात्रि के दूसरे दिन होती है मां ब्रह्माचारिणी की पूजा, जानिए विधि, और कथा
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By Admin
Published - 08 October 2021 365 views
नवरात्रि के दूसरे दिन होती है मां ब्रह्माचारिणी की पूजा, जानिए विधि, और कथा
नवरात्रि में हर दिन मां के अलग स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है। आज चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन है यानी मां ब्रह्माचारिणी की पूजा-अर्चना का दिन। मां का यह रूप भक्तों को मनचाहे वरदान का आशीर्वाद देता है। मां के नाम का पहला अक्षर ब्रह्म होता है जिसका मतलब होता है तपस्या और चारिणी मतलब होता है आचरण करना। मान्यता है कि इनकी पूजा से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार , संयम की वृद्धि होती है। जानिए नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा विधि, व्रत कथा, आरती, मंत्र, मुहूर्त…
पूजा विधि: सबसे पहले सुबह नहा-धोकर साफ-सुथरे कपड़े पहन लें। अब ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए उनका चित्र या मूर्ति पूजा के स्थान पर स्थापित करें। हाथ में फूल लेकर ब्रह्माचारिणी देवी का ध्यान करें और इस मंत्र का जाप करें “दधानां करपद्याभ्यामक्षमालाकमण्डल। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्माचारिण्यनुत्तमा।” माता के चित्र या मूर्ति पर फूल चढ़ाएं और नैवेद्य अर्पण करें। मां ब्रह्मचारिणी को चीनी और मिश्री पसंद है, इसलिए उन्हें चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग चढ़ाएं। माता को दूध से बने व्यंजन भी अतिप्रिय हैं तो आप उन्हें दूध से बने व्यंजनों का भोग लगा सकते हैं।
मां ब्रह्माचारिणी की कथा: पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए. कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की. यह आप से ही संभव थी। आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ. जल्द ही आपके पिता आपको लेने आ रहे हैं। मां की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है।
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