कन्हैया मणि त्रिपाठी इंटरनेट मीडिया कुशीनगर संवाददाता
कहते हैं कि जब पूर्व जन्म के विशेष संस्कारों का उदय होता है तभी सात्त्विक परिवार में जन्म होता है । *साध्वी सुश्री स्वर्णिम दीदी जी* का जन्म *उत्तर प्रदेश* के *कन्नौज* जिले में एक ऐसे ही सर्वसम्पन्न परिवार में हुआ जहाँ जन्म से ही सात्विक एवं आध्यात्मिक वातावरण रहा। परिवार के सदस्यों का *भगवान श्रीरामचंद्र* के प्रति विशेष लगाव था इस कारण बचपन से ही घर में अक्सर *रामायण* का *अखण्ड पाठ* होता रहता था । घर के बड़े -बुजुर्गों से भी रोज तुलसीकृत रामायण का पाठ सुनने का सौभाग्य मिलता था। जब आपकी (दीदी जी) उम्र मात्र *4 वर्ष* की थी उस समय TV पर *रामायण* (रामानन्द सागर कृत) आती थी , तो उसमें *राम - सीता* जी के चरित्र को देखकर आपके (दीदी जी) के मन में उनसे मिलने की व्याकुलता प्रकट हो गई ... और जहाँ कहीं भी जाती तो रास्ते में उनकी दृष्टि केवल राम - सीता जी को ही खोजती रहती थी कि शायद कहीं उनको उनके राम सीता जी दिख जाएं उनसे भेंट हो जाय, लेकिन बालपन के कारण आपका (दीदी जी) ये कोमल हृदय नहीं जानता था कि भगवान ऐसे नहीं मिलते ! कुछ समय पश्चात जब आपके (दीदी जी) घर में उनकी बुआ जी की शादी हुई तब आपने (दीदी जी) निश्चय किया कि वह आजीवन विवाह नहीं करेंगी । उस समय आपकी (दीदी जी) उम्र मात्र 6 वर्ष की थी ।
आप (दीदी जी) की *सांसारिक शिक्षा* का प्रारम्भ *3 वर्ष* की आयु से ही हो गया था। जब दीदी जी 5वीं क्लास में थीं तब वो सोचती थीं कि डॉक्टर बनकर मरीजों की सेवा करेंगे। 10 वर्ष की उम्र में जब वह 7वीं क्लास में थीं तो आपके (दीदी जी) घर के पास एक कॉलेज में *श्रीराधाकृष्ण भक्त जगद्गुरु कृपालु जी महाराज* जी की एक प्रचारिका *सुश्री ब्रज किन्नरी देवी जी* द्वारा *प्रवचन* हो रहा था जहाँ आप अपने माता पिता के साथ गईं और उनको देखकर अधिक आकर्षित हुईं । उसके पश्चात आपके निवास में ही उनका आवागमन होने लगा इस कारण से संतों का बहुत अधिक सानिध्य प्राप्त हुआ जिसके कारण *कृष्ण भक्ति* में अधिक मन लगने लगा और *कृष्ण* को ही अपना *सर्वस्व* मानने लगीं। प्रथम बार जब किन्नरी देवी जी ने जब आपको आपके घर पर देखा तो आपके पिता जी से बोली कि भईया ! अपनी इस बेटी की शादी मत करना इसको तो मैं अपने साथ ले जाऊंगी । तब से आपके कोमल मन में बैठ गया की अब मुझे इन्हीं के साथ जाना है बस अब यही हमारी दीदी गुरु हैं , यही हमारा लक्ष्य है केवल सन्त सेवा ।
अब जब भी आप (दीदी जी) अपनी दीदी गुरु से मिलती या वो आपके घर पर आती तो आप उनके साथ जाने की जिद करतीं । लेकिन आपकी दीदी गुरु आपको बहुत छोटा समझकर यह कहकर टाल देतीं कि पहले 18 साल की हो जाओ, पढ़ाई पूरी कर लो पढ़ाई हर क्षेत्र में जरूरी है ! यह सब सुनकर आप (दीदी जी) मायूस हो जातीं कुछ बोल नहीं पाती थीं। उसके पश्चात आप (दीदी जी) सांसारिक शिक्षा यह सोचकर प्राप्त करती रहीं कि अगर दीदी गुरु के पास नहीं जाने को मिला तो डॉक्टर बनकर जन सेवा करते रहेंगे ।
धीरे धीरे समय बीता... 18 वर्ष की आयु में आपने (दीदी जी) ग्रेजुएशन कम्पलीट कर लिया और कन्नौज से 80 किलो मीटर की दूरी पर कानपुर में रहकर कानपुर यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट का प्रथम वर्ष कर रही थीं कि अचानक मन में व्याकुलता हुई कि अब तो 18 वर्ष पूर्ण हो गए अब हमारा जीवन सांसारिक पढ़ाई में व्यर्थ जा रहा है अब तो केवल प्रभु भक्ति में ही समय देना चाहिए पता नहीं यह जीवन कब समाप्त हो जाय यह सोचकर आप (दीदी जी) अपना जो सोने की वस्तु पहने हुए थीं उसको बेचकर ticket के लिए पैसे इकट्ठा करके कानपुर से जबलपुर (मध्य प्रदेश) बिना किसी को बताए चली गईं। (जहाँ उनकी दीदी गुरु रहती थीं) और रास्ते में सोचती रहीं कि यदि दीदी गुरु ने अपने साथ नहीं रखा तो जंगल जाकर के भक्ति करेंगे ।
जबलपुर पहुंचने के पश्चात दीदी गुरु ने आपके (दीदी जी) के पिता को बुलाकर यह कहकर घर भेज दिया कि अभी पढ़ाई पूरी करो .. गुरु आज्ञा पालन करने के कारण न चाहते हुए घर जाना पड़ा । जब एडमिशन का समय आया तो शायद भगवान ही आपका (दीदी जी) का साथ दे रहे थे.. तब तक फॉर्म की date ही निकल गई , उसके पश्चात एक वर्ष में आपने (दीदी जी) ने *CBSE स्कूल* में *Teaching Job* करते हुए साथ ही *Computer, Shorthand, English Speaking* की शिक्षा भी प्राप्त की और उसके साथ अनशन करके पापा जी और दीदी गुरु जी को भी मना लिया और फिर सबकी सहमति से सदा सदा के लिए स्वयं को गुरु सेवा में समर्पित कर दिया । तत्पश्चात् कुछ वर्षों तक सौभाग्यवश *कृपालु जी महाराज जी* का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। फ़िर कुछ समय तक सन्तों के सानिध्य में रहकर सेवा की पश्चात गुरु कृपा से जन जन में भगवद् भक्ति का प्रचार करते हुए जीव कल्याण का प्रयास कर रहीं हैं ।
लेखिका
श्रीमती बृजेश त्रिपाठी (अध्यापिका)
(विशेष अन्तरंग सत्संगी)
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