याद है तुम्हें.....
कितना समझाया था,
तुमने सिगरेट नहीं छोड़ी,,
और मैंने चाय...!
तुम हर कश में मेरे जज़्बातों को राख करते रहे,,
और मैं,,,,
हर घूंट में उन्हें ताजा करती रही..!
मैं आज भी हैरान हूं
जाने किस राह चले गए तुम
ऐसे भी कोई जाता है क्या..??
तुम्हारे क़दमों के निशान भी अब नजर नहीं आते,,