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चमत्कार

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हम चमत्कार को स्वीकार करते हैं क्योंकि हमे यह आसान लगता है। 

 सभी को आसान रास्ता चाहिए। सफलता का संबंध चमत्कार से नहीं परिश्रम से है। धर्मपालन बुरा लगता है क्योंकि उसमे आत्मसुधार की जरूरत होती है। हम कड़वा सच स्वीकार नहीं  करना चाहते। इसीलिए चमत्कार को ढुढ़ते रहते हैं। कभी निर्मल बाबा मे, कभी राम रहीम मे, कभी राधे माँ मे  और कभी रामपाल मे। चमत्कार का आरम्भ होता है विचार ना करने से।हम  विचार और परिश्रम के स्थान पर ताबीज और आशीर्वाद को महत्व देने लगे तो समझिए हम चमत्कार के पक्ष मे खड़े हैं। 


सर्दी के दिन थे। एक रात एक आदमी ने पंसारी की दूकान से शक्कर की 2 बोरी चुरा ली।

चौकीदार ने शोर मचाया । कुछ आदमी पीछे भागे। चोर ने पकडे जाने के डर से सोचा- क्यों ना बोरी कुँए में फेंक दूँ ।


एक तो वह जैसे तैसे रात के अँधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक दी, लेकिन जब दूसरी बोरी क़ुए में डालने लगा तो अंधेरे और किनारे की फिसलन के कारण खुद भी बोरी के साथ कुँए में गिर गया। रात भर कुएं मे फंसा रहा। 


सुबह शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गए। कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं। उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया. परन्तु सर्दी के कारण और रात भर पानी में रहने से वह कुछ घंटों के बाद मर गया। मरने के बाद दफना दिया गया ।


दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था। नजदीक की मस्जिद के मौलवी साहब ने इसे चमत्कार बताया।


उस आदमी को पीर घोषित किया। उसकी कब्र को आलिशान दरगाह बना दिया। हजारों हिन्दू हनुमान जी को छोड़ कर दरगाह पर जाने लगे। उनमे वह पंसारी भी था जिसकी दूकान में चोरी हो गई।


पीर के चमत्कारों की कहानियाँ चारों तरफ फ़ैल गई। हर साल उस दरगाह पर उर्स मनाया जाता है। करोड़ों का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। समझदार समझ ले अन्धविश्वास और चमत्कार में क्या सम्बन्ध होता है?